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रतनगढ - कहानी दो जहां की (भाग 10)

आवाज सुनाई देने पर निहारिका कांप गई। वह आवाज एक पल तक गूंजी और फिर अचानक बंद हो गई। निहारिका कुछ समय तक उसे दोबारा सुनने की कोशिश करती रही लेकिन दोबारा उसे कुछ सुनाई नहीं दिया।


निहारिका को कुछ समझ नहीं आया उसे ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए। पहले से ही बहनों का अलगाव, फिर रतनगढ़ के अजीबो गरीब किस्से, वह चमकीली आंखे, और बूढ़े की बातें और अब ये अचानक से छाया घोर अन्धकार, हताश परेशान निहारिका ने पैलेस में ही आगे बढ़ने का निर्णय लिया।


तो क्या वे आने वाले लोग इसके बारे में भी बात कर रहे थे, कुछ कुछ अंधेरे जैसा जिक्र किया था उन्होंने। हमे ठीक से समझ नही आया, लेकिन देख कर लग रहा है यह भी विचित्र ही है।


उसने अपने हाथो को सामने फैला दिया और धीरे धीरे आगे कदम बढ़ाने लगी। 


"आह… आ…. ह सिसकारी की आवाज ने एक बार फिर उसके कदमों को रोक कर जेहन में डर भर दिया। वह इतनी खामोश हो गई कि उसकी अपनी सांसे भी उसे सुनाई नही दी। घने अंधकार में एक अजीब सी साय साय गूंज रही थी। जिसे बीच बीच में सिसकियों की आवाजे तोड़ रही थी।


"आह्हह......" - दूर कहीं से आती हुई, किसी के कराहने की आवाजें निहारिका के मन पर हावी होने लगी। उसके पैर कंपकंपाने लगे लेकिन जेहन के एक कौने से आवाज अब भी उसके कानो तक आ रही थी, निहारिका हिम्मत रख, तेरी बहनों का सवाल है!


 उस वक्त उसे काफी अजीब लगा, जब उसे कराहने की आवाज के साथ साथ किसी के जमीन पर घिसटने की आवाजे भी आने लगी। जिसके साथ ही बढ़ रही थी गुर्राहट…! ऐसा लग रहा था कोई जानवर गुर्रा रहा हो उस पैलेस में।


कहीं इस पैलेस में कोई जानवर तो नहीं, वह कल्पना करते ही डर कर दहशत में आ गई। हां जानवरो की आंखे अंधेरे में देखने की अभ्यस्त होती हैं। लेकिन किसी राजसी पैलेस में कोई जानवर क्यू होगा। हम भी न कैसे बेवकूफी भरे ख्याल जेहन में ला रहे हैं… उसने खुद को दिलासा दिया।


लेकिन अगले ही पल उसके सारे दिलासे धरे रह गए। 

ऐसी आवाजे हमने पहले कभी सुनी भी तो नहीं। किसी के गुर्राने जैसी, घिसने जैसे किसी की कराह… कहां आ गए हम? यहां कुछ भी नजर भी नही आ रहा है जो हम कुछ पता कर पाएं। उसने घबरा कर दोनो हाथ जोड़े और पूरे मन से अपने आराध्य देव से सलामती के साथ मदद की गुहार लगाई।


लेकिन दहशत उसके मन पर इतना हावी हो गई कि उसके कदम पीछे खिसकने लगे। जैसे जिसे निहारिका के कदम पीछे खिसक रहे थे वैसे वैसे ऐसा लग रहा था जैसे एक अजीब सी गुर्राने की आवाज उसके और करीब आती जा रही हो। कुछ कदमों के बाद ही उसने यह महसूस कर लिया उस सियाह अंधियारे में वह अकेली नहीं है। वहां कोई और भी है शायद, दोस्त या दुश्मन पता नही कौन, लेकिन कोई तो है वहां। वह बुरी तरह घबरा गई। उसके पसीने छूटने लगे और वह मुड़कर वहां से भागने को हुई कि कुछ कदम बाद ही उसके कंधे किसी मजबूत चीज से जोर से टकराए। 

आह.., उसके मुंह से शब्द निकला और वह कंधे को सहलाती हुई वहीं रुक गई।


अंधेरे की वजह से निहारिका ये नही जान पाई वह किससे टकराई थी, लेकिन ये समझ गई वहां कोई और भी है क्योंकि जब वह वहां से अंदर आई थी तब ऐसी कोई रुकावट नहीं थी बीच में। घबराते हुए वाह चार कदम पीछे हो गई… 


"क.. कौन है, कौन है यहां..?" निहारिका ने अंधेरे में देखने की नाकामयाब कोशिश की। परंतु उसके शब्दो का कोई जवाब नही मिला उसे। दहशत की वजह से उसका गला भी सूखने लगा अब, उसके मन में दूसरी ओर जाने का अविश्वसनीय ख्याल आया और उसके कदम मुड़ते हुए पैलेस के अंदर की ओर दौड़ाने लगे। कुछ आगे जाते ही उसे बेहद हल्की रोशनी नजर आई तब वह उसी का सहारा लिए आगे बढ़ गई।


गुर्राने और घिसटने की आवाजे अब दूर होती सुनाई दी।लेकिन कराहने की आवाज अब उसे करीब मालूम पड़ने लगी। शायद हम सही दिशा की ओर जा रहे है, उसने मन में उठ रहे सवालों को जवाब देते हुए खुद को दिलासा दिया।निहारिका के जेहन में अपना फोन इस्तेमाल करने का ख्याल पूरी तरह निकल चुका था।


 हालांकि वह अब भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी लेकिन निहारिका को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो आवाज उसे खींच रही अपनी तरफ।उसे लग रहा था शायद किसी को हमारी मदद की जरूरत है, कोई है यहां जो बेहद तकलीफ में है।


निहारिका आगे बढ़ी, रोशनी मद्धम सी थी रास्ता तो क्या हाथ भर की दूरी भी साफ साफ नहीं देखी जा सकती थी, उससे नजर आता तो सिर्फ महल में मौजूद वस्तुओ की बड़ी बड़ी परछाईं। वे परछाई उसे भ्रम में ले आई और वह चलते हुए बार बार किसी न किसी चीज से टकरा रही थी।


करीब पच्चीस तीस कदम चलने के बाद निहारिका उस जगह पहुंच गई जहां से रोशनी फूट रही थी। मद्धम बल्ब था वहां, और वो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जानबूझकर इतनी कम रोशनी का इंतजाम किया हो।


वह वहां रुक गई। उसने देखा, उस बल्ब के पास एक दीवार है। उसने बेहद सतर्कता से उस पर हाथ रखने की कोशिश की। एक हल्का कंपन महसूस हुआ। एक अजीब खाली सा एहसास, उसने अंगुलियों को मोड़ा और ठक ठक की ध्वनि उस पर की। कुछ अलग आवाज उसे सुनाई दी। निहारिका के मन में उसके पर जाने का ख्याल आया तो बिन किसी देरी के उसके कदम उस और बढ़ गए। घना अंधेरा उधर भी था लेकिन वहां कुछ और आवाजे भी आ रही थीं, जैसे पानी के छलकने की आवाजें, किसी डरावनी ताल की आवाजे और अचानक हवा के सरसराने से कुछ उड़ कर गिरने की आवाजें।


उसे अपने फोन का ध्यान आया उसने रोशनी का इंतजाम किया और धीरे धीरे चारो ओर देखने लगी।


जहां तक उसकी रोशनी जा रही थी वहां तक उसने देखा, वह एक बहुत ही भव्य और खूबसूरत महल था जो कि दिखने में डिजाइन और बनावट के हिसाब से कम से कम 200 साल पुराना लग रहा था, लेकिन उस का रखरखाव और देखरेख इतनी ज्यादा अच्छी तरह से की गई थी कि सब कुछ नवीन बना हुआ ही प्रतीत हो रहा था।


उसके मन से सारा डर जाता रहा, आर्किटेक्ट होने के कारण वह महल की खूबसूरती में ही सब भूल गई और आगे बढ़ते हुए मोबाइल की रोशनी से उसका जायजा लेने लगी।


"वाओ! इट्स सो ब्यूटीफुल.... आई कांट इवन इमेजिन दैट!" - उस रोशनी वाली जगह पर आकर चारों तरफ नजरें घुमा कर उस पूरे महल को गौर से देखते हुए आखिर निहारिका के मुंह से निकल ही गया।


वहां हर जगह रोशनी के इंतजामात थे जो बिल्कुल आधुनिकता से भरे हुए थे। और जितनी जरूरत थी उस से ज्यादा ही इलेक्ट्रिक बल्ब्स लगे थे, लगभग हर जगह  पैलेस की छत, बड़ी दीवारे, टेबल। लेकिन अजीब ये था इतना सब होने के बावजूद भी पैलेस मनहूस अंधियारे से घिरा हुआ था।


"तो यह है कुंवर साहब का पैलेस!" - निहारिका ने जैसे खुद को विश्वास दिलाते हुए दोहराया।


"पता नहीं, अभी कहां चले गए थे हम कुछ देर पहले? चलो अच्छा हुआ सही जगह तो पहुंचे अब बस कुवंर साहब को ढूंढना हैं।" - मन में बोलते हुए निहारिका अपनी जगह से आगे बढ़ी और इस उम्मीद में इधर-उधर चारों तरफ देखने लगी कि शायद उसे अपने अलावा कोई और इंसान भी दिख जाए जो कुंवर साहब तक पहुंचने में उस की कोई मदद कर सके।


लेकिन अंधियारे में उसे कोई और नजर नहीं आया सिवाय दो चमकती घूरती आंखो के...


जारी...

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8 Comments

shweta soni

30-Jul-2022 08:13 PM

Nice 👍

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Poonam s ram

25-May-2022 01:16 PM

Nice

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Shnaya

03-Apr-2022 02:19 PM

शानदार भाग

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